MP News: क्या नरोत्तम मिश्रा बन सकते हैं मध्य प्रदेश भाजपा के नए अध्यक्ष अमित शाह से लंबी मुलाकात ने बढ़ाई हलचल

MP News: भोपाल मध्य प्रदेश राजनीति में अब दिन प्रतिदिन तेजी से उबड़-भिड़ होता एक सवाल है मध्य प्रदेश भाजपा का अगला अध्यक्ष कौन होगा?\” पार्टी में संगठनात्मक बदलाव की हलचल जोरों पर है और अब चर्चाओं का केंद्र बन गए हैं नरोत्तम मिश्रा। अमित शाह के भोपाल के हाल ही में आयोजित दौरे और नरोत्तम मिश्रा के साथ लंबी बातचीत ने इस गुइंमटवाह को और हवा दे दी है।
क्या नरोत्तम मिश्रा की सधी हुई चाल
पॉलिटिकल गलियारों में चर्चा है कि बी.दी. शर्मा का कार्यकाल अब समाप्ति की ओर है, और पार्टी को एक नए चेहरे की तलाश है जो संगठन को फिर से बढ़िया बना सके। ऐसे में नरोत्तम मिश्रा का नाम बार-बार उभरकर सामने आ रहा है। मिश्रा मध्य प्रदेश सरकार में पूर्व गृह मंत्री रह चुके हैं और अपने तेज-तर्रार बयानों व रणनीतिक पकड़ के लिए प्रसिद्ध हैं।
अमित शाह से लंबी मुलाकात
भोपाल में हाल ही में हुए एक कार्यक्रम के दौरान अमित शाह और नरोत्तम मिश्रा के बीच हुई बैठक, सिर्फ एक शिष्टाचार मुलाकात नहीं मानी जा रही। यह मीटिंग करीब 45 मिनट तक चली, जो राजनीतिक जानकारों को बहुत कुछ कहती है। पार्टी के वरिष्ठ नेता इस मुलाकात को एक “राजनीतिक संकेत” मान रहे हैं कि बदलाव की तैयारी पूरी हो चुकी है।
जातीय और क्षेत्रीय समीकरण
बीजेपी हमेशा से जातीय और क्षेत्रीय समीकरण को ध्यान में रखकर ही संगठनात्मक नियुक्तियां करती आई है। बीडी शर्मा के कार्यकाल के बाद पार्टी एक ऐसे नेता को आगे लाना चाहेगी जो प्रदेशव्यापी स्वीकार्यता पायमामला हो। नरोत्तम मिश्रा का राजनीतिक अनुभव, संगठन पर पकड़ और पार्टी के दिग्गज नेताओं से अच्छे रिश्ते उन्हें बाकी उम्मीदवारों से विस्थापन करते हैं।
अन्य दावेदार
Although नरोत्तम मिश्रा सबसे स्ट्रोंगेस्ट चेहरा माने जा रहे हैं, लेकिन रेस में कुछ और नाम भी शामिल हैं। कुछ महिला नेताओं और आदिवासी वर्ग से आने वाले नेताओं ने भी इस दौड़ में भाग लिया है। पार्टी संगठन का यह मानना है कि अगले अध्यक्ष को चुनते समय लोकसभा चुनाव 2024 की रणनीति को भी ध्यान में रखा जाएगा।
मिश्रा की छवि
नरोत्तम मिश्रा को भले ही ‘बयानवीर’ नेता के रूप में जाना जाता हो, लेकिन उनकी जमीनी पकड़, भाजपा कार्यकर्ताओं में लोकप्रियता और मीडिया हैंडलिंग स्किल उन्हें एक परिपक्व संगठन नेता भी बनाते हैं। वे चुनाव हारने के बाद भी लगातार सक्रिय हैं और उनका वर्चस्व कम नहीं हुआ है।